बुधवार 27 अगस्त 2025 - 09:14
इमाम ज़माना अलैहस्सलाम की मोहब्बत के उदाहरण

हौज़ा / इमाम अपने अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी दया और मोहब्बत के कारण उनसे काफी जुड़ा होता है, और इसी प्यार और दोस्ती की वजह से वह उनके दर्द और तकलीफ में शरीक होता है। यह ऐसे है जैसे एक माँ अपने बच्चे से इतना जुड़ी होती है कि जब बच्चा बीमार होता है तो माँ भी बीमार हो जाती है, और जब बच्चा ठीक होकर खुश होता है तब माँ भी खुश और प्रफुल्लित हो जाती है, क्योंकि बच्चा माँ के लिए अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा होता है।।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,  हमने ग़ायब इमाम के फ़ायदों के बारे में बात की है और समझाया है कि इस दुनिया का दौर चलता रहना और सभी जीवों की ज़िंदगी उसी महान व्यक्ति की मौजूदगी पर निर्भर करती है। इस मौके पर हम ग़ायब इमाम की असीम मोहब्बत के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, जो अलग-अलग तरीकों से सामने आए है, ताकि सबको पता चले कि ये नेक और दयालु इमाम अपनी ग़ैबात के बावजूद हर जगह अपने प्यार का उजाला फैला चुके हैं। उनकी मेहरबानी और रहम बहती हुई नदियों की तरह लगातार जारी रहती है।

मोमिन इंसान के सबसे बड़े गुणों में से एक है अपने धार्मिक भाई-बहनों के साथ मिलकर सहानुभूति रखना। इस्लामी समाज में मोमिन एक जैसे शरीर की तरह होते हैं, जहां एक की पीड़ा दूसरे के लिए तकलीफ़, और एक की खुशी दूसरे के लिए खुशहाली का कारण होती है, क्योंकि कुरआन साफ कहता है कि वे सब भाई-बहन हैं।

बहुत सी हदीसों में, आइम्मा ए मासूमीन (अलैहिमुस्सलाम) ने अपने शिया भक्तों के प्रति सहानुभूति और दर्द महसूस करने की बात कही है। यह खूबसूरत भावना उनके दोस्तों के दिल को सुकून और राहत देती है, और एक दिल की ताकत बनती है जो उन्हें ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव में हौसला देती है और उनकी सहनशीलता और मजबूती को बढ़ाती है।

इमाम रज़ा (अ) फ़रमाते हैं:

"مَا مِنْ أَحَدٍ مِنْ شِیعَتِنَا یمْرَضُ إِلَّا مَرِضْنَا لِمَرَضِهِ وَ لَا اغْتَمَّ إِلَّا اغْتَمَمْنَا لِغَمِّهِ وَ لَا یفْرَحُ إِلَّا فَرِحْنَا لِفَرَحِه‏ मा मिन अहदिन मिन शीअतेना यमरज़ो इल्ला मरिज़्ना लेमरज़ेही वला इग़्तम्मा इल्लग़ तमम्ना लेग़म्मेही वला यफ़रहो इल्ला फ़रेहना लफ़रेहेहि "

हमारे किसी भी शिया में अगर कोई बीमारी आती है तो हम भी उसी बीमारी में बीमार हो जाते हैं, और अगर वह दुखी होता है तो हम भी उसके दुख में दुखी होते हैं, और अगर वह खुश होता है तो हम भी उसकी खुशी में खुश होते हैं। (बिहार उल अनवार, भाग 65, पेज 167)

इसलिए, इमाम अपने अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी दया और मोहब्बत के कारण उनसे काफी जुड़ा होता है, और इसी प्यार और दोस्ती की वजह से वह उनके दर्द और तकलीफ में शरीक होता है। यह ऐसे है जैसे एक माँ अपने बच्चे से इतना जुड़ी होती है कि जब बच्चा बीमार होता है तो माँ भी बीमार हो जाती है, और जब बच्चा ठीक होकर खुश होता है तब माँ भी खुश और प्रफुल्लित हो जाती है, क्योंकि बच्चा माँ के लिए अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा होता है।

और इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने भी फ़रमाया:

"وَ اللَّهِ إِنِّی أَرْحَمُ بِکُمْ مِنْ أَنْفُسِکُم वल्लाहे इन्नी अरहमो बेकुम मिन अनफ़ोसेकुम "

मैं क़स्म खाता हूँ कि मैं आप लोगों पर खुद आप लोगों से भी ज्यादा दया करता हूँ।(बसाइर उद दरजात, पेज 265)

नतीजा यह है कि इमाम का प्यार बाकी सभी प्यारों से अलग होता है। यह एक सच्चा, बेदावत और असीम प्यार होता है, जो सिर्फ ज़ुबान पर नहीं बल्कि दिल और उसकी गहराईयों में छुपा होता है। इसी वजह से वह पूरी रूह और शरीर से अपने शियाो के साथ जुड़ा होता है।

इस इलाही मोहब्बत के उदाहरणों में से एक इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के वुजूद में इस तरह वर्णित किया गया है:

"إِنَّهُ أُنْهِی إِلَی ارْتِیابُ جَمَاعَه مِنْکُمْ فِی الدِّینِ وَ مَا دَخَلَهُمْ مِنَ الشَّکِّ وَ الْحَیرَه فِی وُلَاه أَمْرِهِمْ فَغَمَّنَا ذَلِکَ لَکُمْ لَا لَنَا وَ سَأَوْنَا فِیکُمْ لَا فِینَا لِأَنَّ اللَّهَ مَعَنَا فَلَا فَاقَه بِنَا إِلَی غَیرِه इन्नहू उन्ही एलर तियाबो जमाअते मिन्कुम फ़िद दीने वमा दख़लहुम मिनश शक्के वल हैरते फ़ी वुलाते अमरेहिम फ़ग़म्मना ज़ालेका लकुम ला लना व साऔना फ़ीकुम ला फ़ीना लेअन्नल्लाहा मआना फ़ला फ़ाक़ता बेना ऐला ग़ैरेह "

मुझे पता चला है कि आप में से कुछ लोग अपने धर्म में शक करने लगे हैं और उनके दिलों में अपने वली अमरो को लेकर संदेह और उलझन पैदा हो गई है। इससे हमें बहुत दुख हुआ, लेकिन यह दुख आपके लिए है, हमारे लिए नहीं। और यह हमें आपसे भी नाराज़ नहीं करता, न ही अपने लिए। क्योंकि अल्लाह हमारे साथ है, और उसके होने से हमें किसी और की ज़रूरत नहीं है। (बिहार उल अनावर, भाग 53, पेज 178)

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

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